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जैन रत्नाकर
जीवितव्य मरण सधीर हो ॥गु॥श्रा॥ आशा नहीं काम भोगरी ॥7॥ सम परिणाम सुथिर हो ॥7॥ श्रा।। भावै ॥ १५ ॥ अन्त समा में एहयो । गु॥ पण्डित मरण जे थाय हो ॥ गु॥ श्रा॥ मनरा मनोरथ जद फल ।।। आनन्द हर्ष सवाय हो ॥7॥श्रा ॥ भावै ॥ १६ ॥ धन्य दिवस धन्य जे घड़ी ॥ गु॥ आराधक पद पाय हो ॥ गु॥श्रा॥ अल्प भवारे आंतरे ॥ 7 ॥ सिद्ध गति में ते जाय हो ।। ग॥श्रा ॥ भावै ॥ १७ ॥ श्री भिक्षु गुण आगला ॥ गु॥ प्रगट बतायो राह हो । गु॥ जिन धर्म जिन आज्ञामहीं।गु॥ आज्ञा वाहेर नाहि हो ।। गु॥श्रा ॥ भावै ॥१८॥ भारीमाल गणि तस पटे ॥ गु॥ तृतीय तख्त ऋपराय हो ।। गु ॥ ॥श्रा ।। जय वर पट तूर्य सूर्य सा ।।गु ।। पञ्चम मघवा कहवाय हो॥ग ॥ श्रा॥ भावे ॥ १६ ॥ माणक माणक सारिखा ॥ गु॥ वर्तमान गच्छ स्थम्भ हो ॥ गु॥ श्रा॥ नामें डाल शशि भला । गु० ॥ भविजन निरख अचम्भ हो ॥ गु० ॥ श्रा०॥भावै० ॥ ॥२०॥ उगणीस पैंसठ बलि ॥ गु० ॥ मृगशर सित पख पेख हो । गु०॥ श्रा० ॥ श्रावक गुलाब