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जैन रत्नाकर
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२ || ३ || दोष बयालिस टालके, ले भिक्षु शुद्ध आहार । कह्यो को भिक्षु ए गुण थकी, भेदे कर्म अपार ॥ धन २
महा गुण खान ।
धन २ ॥ ५ ॥
॥ ४ ॥ साधे शिव मग साधना, साधु द्वादश भेदे तप करै, तपसी नाम बखान ॥ मतहणो २ जीवने, दे उपदेश महन्त । माहण महा गुण आगला, शान्ति-भाव ते सन्त ॥ धन २ ॥ ६ ॥ कल्याणकारी ते भणी, कल्याणिक मुनि नाम । विज्ञोपशमकारी पणे, मंगलीक अभिराम ॥ धन २ ॥ ७ ॥ धर्मोपदेशक गुण थकी, पूजनीक तसु पाय । तीन लोक ना अधिपति, धर्म देव मुनिराय || धन २ ॥ ८ ॥ चित्त प्रसन्न दरशन तसु, चैत्य सदा सुखकार । नव विध पालै बक्ष क्रिया, बलिहारी ब्रह्मचार || धन २ ॥ ६ ॥ जन्म सफल कियो महा ऋषि, षट् काया प्रतिपाल । भव सागर में डूबताँ, जहाज समान दयाल || धन २ ॥ १० ॥ स्नेह पास नहिं केह सूं, सम्बेगी वैराग । ग्रन्थी त्याग निग्रन्थ है, महकत सुयश अथाग ॥ धन २ ॥ ११ ॥ शुद्ध क्रिया में श्रम करें, श्रमण कहिजै तेह | योग विमल साधै सदा, तिणसूं योगी कह || धन २ ॥ १२ ॥ आर्जव २ भाव थी,