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जैन रत्नाकर जैन भजन
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प्रातः स्मरण की ढाल । श्री ऋषभ सजित संभव अभिनन्दजी रे, सुमति पदम सुपासः। चन्द सुविध शीतल श्रेयांस नमुं : सदाः रे; वासुपूज्य गुणरास ॥ श्रीजिन - वन्दिये रे॥ वन्द्याँ परम आनन्दक, पाप निकन्दिये रे ॥ जयकारी जिनः चन्दक, श्री जिन वन्दिये रे ॥ १॥ विमल, अनन्त: धर्म जिनजी जपियेरे, शान्ति करण प्रभु सन्त । कुन्थु. अर मल्ली मुनि सुत्रत नमि नेमजी रे, पारस वीरः भगवन्त ॥ श्री ॥२॥ जग हितकारी तारी बहु नर नारने रे, उपकारी अरिहन्त । सिद्ध तणा सुख पाम्या, प्रभुजी शाश्वता रे, हूँ प्रणमं धर खन्त ॥ ३॥ साम्प्रत विचरै वहरमान जिन वीस छै रे, अढाई द्वीप मझार। सीमंधर जुगमंधर वाहु सुबाहुजी रे, जम्बूद्वीप में च्यार ॥४॥ सुजात स्वयं प्रभु ऋषभानन्द अनन्तवीर्य जी रे, पूर्व धातरी खण्ड। सूर विशाल वज्र धर चन्द्राननजी रे, पश्चिम च्यार जिणन्द ॥ ५॥