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जैन रत्नाकर
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चित्त प्रधान पूणियो श्रावक, । । मन्त्री अभयकुमारो रे ॥ श्रा० ॥ आनन्दादि उपासक वर्णक,
सप्तम अङ्ग सुप्यारो रे॥ श्रा० ॥८॥ शङ्ख-पोखली भगवति सूत्रे, . । सुलसाँ सति श्रियकारो रे ॥ श्रा० ॥ राणी चिल्लणा जबर जयन्ति,
निसुणो तस अधिकारो रे ॥ श्रा० ॥६॥ भिक्षु-रचित बारह व्रत चौपी, . । विस्तृत रूप विचारो रे ॥ श्रा० ॥ दृग-गोचर अथवा श्रुति-गोचर,
कर-कर आत्म उद्धारो रे ॥ श्रा० ॥ १० ॥ उगणीशै नव नवती वर्षे, : चूरू - शहर मझारो रे ॥ श्रा० ॥ तुलसी गणपति व्रत सम्पति हित,
आखी सीख उदारो रे॥ श्रा० ॥११॥