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जैन रत्नाकर चन्द्रबाहु भुजङ्ग ईश्वरजी नेमजीरे, 'पूरव अध पुखराज । वीरसेन महाभद्र देवजस अजितजी रे, पश्चिम च्यार जिनराज ॥६॥ फटिक सिंहासण बैठ प्रभुजी देवै देशना रे, ऊपर तरु आशोक । छत्र चमर भामण्डल दीसे झलकता रे, परवल पुन्याई जोग ॥ ७ ॥ देव ध्वनि पुष्प वृष्टि सुर दुन्दुभि रे, अमृत वैन अमाम । अनन्त ज्ञान दरशण तप बल घणो अनन्त छ रे, नमन करूं शिर नाम ॥ ८॥ आयु पूर्व लाख चौरासी जिन तणी रे, समचौरस संठाण । काया धनुष पांच सौ प्रभुनी शोमती रे, वज ऋषभ नाराच संघाण ॥ ६ ॥ जग हितकारी तारी बहु नर नारने रे, उपकारी जिण चन्द। विदेह क्षेत्र ना जघन्य वीस जिन वन्दता रे, अंजै भवि दुख द्वन्द्व ॥ १० ॥ गणधर गौतम इन्द्र अगन वायुभूति नमूं रे, गित सुधर्मा स्वाम। मण्डीपुत्र ने मौर्यपुत्र अकम्पित पुत्र ने अचल नमुं रे, मेतारज प्रभासक ॥ गणधर चन्दिये रे ॥ गुणवन्ता बुद्धिवन्ता गणधर चन्दिये रे ॥ ११ ॥ ब्राह्मी सुन्दरि चन्दन बाला