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जैन रत्नाकर
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श्रावक जीवन की पृष्ठ-भूमिका ।
तेरह नियम लो। घट घट में अब जल्द जगावो , आत्म धर्म की लौ । ते०। श्रावक-पन की पृष्ठ-भूमिका , अब तैयार करो।
तेरह नियम लो॥ इति ध्रुव पदम् ।। मानवता के भव्य-भवन में , खेल रहा प्राणी पशु-पन में। हो मन में मदमस्त अस्त कर , अमित आत्म बल जो॥
तेरह नियम लो॥१॥ उज्ज्वल मन्दिर में जो आये , कीड़े दुर्गण रूप रचाये। क्यों इस छुत रोग को मानव , पुरस्कार अब दो।
तेरह नियम लो॥२॥ वीर-पुत्र बन जो हि बटोरो , अपने जीवन में कमजोरो। देख होत दिल ग्लानि , क्यों नहीं लज्जा से झुको।
तेरह नियम लो ॥३॥ नागपाश से बन्धन टूटे , (तो) क्यों नहीं बुरी आदतें छूटे। 'अव भी पुरुषों में पौरुष है', ऐसी बात कहो।।
तेरह नियम लो ॥४॥ नैतिकता का ऊँचा स्तर हो, मानव मानवता में स्थिर हो। 'तुलसी' ऐसे सार्वजनिक , जीवन उत्थान चहो ।
तेरह नियम लो ॥५॥