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जैन रत्नाकर
सादर शिरोधार्य
मैं तेरह नियम पालूंगा । मैं० 1
श्रोवर के श्रीमुख से नि.सृत, ये महामन्त्र कालूंगा । मैं० ।
ध्रुव पदम् ॥ साधु - हित भोजन बनवा के कभी न दूंगा निकट बुलाके, आत्मघात, मद, मांस, जुत्रा ओर, चौर्य्य कर्म टालूंगा । मैं तेरह नियम पालूंगा ॥ १ ॥ नस प्राणी का प्राण न लूंगा, रात्रि भोजन सात्विक अन्न क्षुधा हरने को, दिन मैं तेरह नियम पालूंगा ॥ २ ॥
रहते
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टाल करूंगा, खालूंगा ।
पर- स्त्री पर नहिं पलक उठाऊं, नहीं कभी भी लाय लगाऊं, नरक - सी समकूं, नहीं नजर डालूंगा ।
वेश्या नार
मैं तेरह नियम पालूंगा ॥ ३ ॥
मिथ्या साक्षी न देने जाऊं, कभी न धूम्रपान अपनाऊ, सत्गुरु जन की शिक्षाओं से, अपने को छालूंगा । मैं तेरह नियम पालूंगा ॥ ४ ॥
तेरह नियम तन मन से पालू : अपने को अति उच्च बनालू, श्री तुलसी चरणार्विन्द के चिह्नों पर चालूंगा । मैं तेरह नियम पालूंगा ॥ ५ ॥