________________
जैन रखाकर
नहिं घट घट व्यापी, हॉ हॉ नहिं । यद्यपि घट घट के ज्ञापी।
प्रभु ज्ञान पतङ्ग प्रतापी ।
सब पाप काप सुमरत सुख पाऊँ मैं ॥ श्री महावीर चरण में सादर श्रद्धा सुमन सझाऊँ मैं ॥३॥
नहिं भगवन् भोगी, हॉ हॉ नहिं० । नहिं योगाराधक योगी।
साकार इतर उपयोगी।
अवियोगि मिलन हित हृदय लुभाऊँ मैं ।। श्री महावीर चरण में सादर श्रद्धा सुमन सझाऊँ मैं ॥४॥
अमृत रस वर्षी, हाँ हाँ अमृत०। चुम्बक वत चिताकपी ।
उपदेश हि जस शिव दी।
तुलसी नत मस्तक शीष चढ़ाऊँ मैं ॥ श्री महावीर चरण में सादर श्रद्धा सुमन सझाऊँ मैं ॥॥