________________
जेन रत्नाकर
C
परमेष्ठी सप्तकं
(देशी-मैं ढूंढ़ फिरी जग सारा) परमेष्ठी पञ्च पियारे, जीवन धन प्राण आधारे, आध्यात्मिक सुख सञ्चारे, निर्दिष्ट मन्त्र ॐकारे ॥ ए आंकड़ी ॥ अरिहन्त प्रथम लहि ख्याती, संहार च्यार धनघाती । द्वादश गुण जस सङ्घाती, जग में शिव पन्थ प्रचारे ॥१॥ है सिद्ध सिद्ध-शिल वासी, अज अजरामर अविनाशी। क्षय अखिल कर्म नी राशी, वास्तव वसु गुण वसनारे ॥२॥ धर्माचारज धृतिधारी, निष्कारण पर उपकारी। लाखों की नैया तारी, छत्र युक्त तीस गुणवारे ॥३॥ है उपाध्याय अधिकारी, गणि पिटिका के भण्डारी। गुण पञ्च वीश गण नारी, जिन शासन गगन सितारे ॥४॥ मुनि पञ्च महाव्रत वारा, काञ्चन कामिनी सं न्यारा। गुरु अनुशासन वहनारा, गुण सप्त वीश सुखकारे ॥॥ सहु निर्विकार निर्मोही, तजि आश्रव आत्म विशोही। जड सेती जडता खोई, लहि जग में जय जयकारे ॥६॥ संवत एके सुविलासे, निज जन्म भूमि सुख वासे । तुलसी गणि स्वमुख प्रकाशे, गुण पञ्च पदों के प्यारे॥७॥