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जैन रत्नाकर
साधु पञ्चकं. ( देशी- असल दुपट्टो फूल रे गुलाबी जानी ) करिये द्विकर जोड़ शिर मोड़, साधु के चरणों में परणाम। चरणों में परणाम रे सुजन जन, करत दुरित क्षय थावे, पावै परमातम हाँ रे हाँरे क, पावै परमातम पद धाम । करिये० ॥ए आंकड़ी॥ आत्म साधना करै रे निरन्तर, सो साधू कहिवावै । भावै शुभ भावन हाँ रे हाँरेक, भावै शुभ भावन अविराम ॥१॥ पञ्च महाव्रत करण जोग जुत, आजीवन सुध पाले। भालै शिव मग हाँ रे ३ क, भालै शिव मग आढू याम ॥२॥ निज जीवन धन गुरु अनुशासन, शीष चढ़ावत वरते । करते करणी हाँ रे ३ क, करते करणी नित निष्काम ॥३॥ पर उपकार परायण पल पल, भल उपदेश सुनावै । ध्यावै जेह नैं हाँ रे ३ क, ध्यावै जेहनै भविक तमाम ॥४॥ सप्त वीश गुण समवायांगे, जिनवर जास बतावै। गावै तुलसी हाँ रे ३ क, गावै तुलसी तस गुण ग्राम ॥५॥