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जैन रत्नाकर
उपाध्याय पञ्चक
(देशी-नाथ कैसे कर्म को फन्द छुड़ायो) भविक उपाध्याय जी नै नित्य ध्यावो, हाँ रे हाँ निज आतम ध्येय बनावो । भ० ॥ ए आंकड़ी। परमेष्ठी पञ्चक में जेहनो, चौथो पद है चावो । सुमर सुमर सप्ताक्षर सुजना, हार्दिक भाव दृढ़ावो ॥१॥ आगम नो अध्ययन अध्यापन, जेहनो कारज ठावो । जिन शासन में ज्ञान विकाशन, एक हि जास उम्हावो ॥२॥ विद्या वारिधि पञ्चाचार,-निपुणता निर्मल भावो । गुरु अनुशासन जीवन जेहनो, सूरि जन शीष झुकावो.॥३॥
सम्प्रति जस कारज सम्पादक, आचारज अनुभावो । सातहि पद नो काम करूँ मैं, (ओ) भिक्षु वचन अपनावो॥४॥
परम प्रभात समय थई सन्मुख, मङ्गल गान सुनावो । पञ्च वीश गुण तुलीस गणपति, मतिना कोई विसरायो॥