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जैन रत्नाकर
अरिहन्त पञ्चक
( राग आशावरी) प्रभु म्हारे मन मन्दिर में पधारो, करूं स्वागत गान सु प्यारो । प्र० । करूं पल पल पूजन थारो । प्र० । आँकड़ी। चिन्मय नैं मृन्मय न बणाऊं, नहिं मैं जड पूजारो । न करूं केशर चन्दन चरची, अविनय नाथ तुम्हारो ॥१॥ नहि फल कुसुमकी भेंट चढ़ाऊँ, (मैं) भाव भेंट करनारो। महिं तिम सलिल स्नान करवाऊँ, आप अमल अविकारो॥२॥ नहिं तत ताल कंसाल बजाऊं, नहिं टोकर टणकारो । जश झल्लरी झणणाऊँ झणणण, धूप ध्यान धरणारो ॥३॥ म्लान स्थान चञ्चलता निरखी, न करो नाथ नाकारो। तुम स्थिर वासे निरमल थासे, थास्ये स्थिरता वारो ॥४॥ द्वादश गुण युत जिनमत अर्हत, शीघ्र विनय स्वीकारो । तुलसी नक्माचार्य करै नित, तेरा पन्थ प्रचारो ॥५॥