________________
११३
जैन रत्नाकर तीन बोलाँ करि जीव अल्प आउषो बान्धै
ते ऊपर ढाल
दहो शुद्ध सार्धा ने अशुद्ध दान दे, जाणी ने ले साध । दोन डबा बापड़ा, जिनवर वचन विराध ॥१॥
ढाल तीन वोलां करो जीवने जी, अल्प आउषो बंधाय। हिन्सा करै प्राणो जीवरी, बलि बोले मूषा वाय जी ॥ साधां ने अशुद्ध बहिरायजी, हिन्सा करि चोखी जायगां बणायजी। साधां ने उतारण री मन मायजी, तिणरै अशुभ कर्म बंधायजी ॥ तीजे ठाणे कह्यो जिनराय जी, बलि सूत्र भगवतो मांयजी। श्रीवीर कहै सुश गोयमा | ए आंकड़ो ॥ १॥ दई लोम्पै साधु कारणैजो, छपरा देवै छाय। केलू पिण फिरता था, जमिया जाला उखेले तायजी। लीलण फूलण मारी जायजी, अनन्ता जोव छै तिण रै मायजी। बले अवर हणी छः कायजी, तिणरी दया न आणी कायजी। तिणर अल्प आयु बंधायजी ॥ श्री वीर कहै ॥२॥ नींव दिरावै ठेट सूजी, टांको बजावै ताय । भेला करि भाठा चूणे, तिण बहुत हणी छः कायजी । अनन्ता जीव हणिया जायजी, ते पूरा केम कहिवाय जी। साधां ने उतारण रो मन ल्यायजो, तिण मोटो कियो अन्यायजो। तिणर अल्प आयु बंधायजो ।।