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जैन रत्नाकर
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अनुमोदी हणतां प्रते, ते तिहुं जोग आलोवं आजकै।। खमत ।। ५॥ लट गिनोला बेइन्द्रिय, कोड़ादिक तेइन्द्री ना जीवकै। खटमल प्रमुख विणासिया, कलुष भाव करी पाड़ी रीवकं ॥ खमत ॥ ६ ॥ माखी माछर चौरिन्द्री, बिच्छु प्रमुख हण्या हुवे सोयक। ये तिहुं विकलेन्द्रि तणी, योनि लख जाणो दोय दोयकै ॥ खमत ॥७॥ रसप्रभा जाव तमतमा, सात नरक में नेरीया जेहकै। च्यार लाख योनि तेहनी, तास खमा सरल पणेहकै । खमत ।। ८ ।। च्यार प्रकारे देवता, भुवनपति व्यन्तर सुविचारकै। ज्योतिषी अने विमानका, चिहूं लख योनि घणो अधिकारकै। खमत ॥६॥ द्वेष भाव किण अवसरे, आण्या हुवै बलि कलुष परिणामकै। तास खमा भली परै, खमज्यो तुम्हें देवा अभिरामकै ।। खमत ॥१०॥ तूर्य लाख तिर्यचनी, जलचर में मच्छादिक जाणकै। थलचर थल पै चालता, हाथी अश्वादिक बहु प्राणकै। खमत ।। ११॥ उरपर उरु से गति करै, शादिक बलि विविध प्रकारकै। भुजपर उन्दर. आदि हैं, तासु खमा तज चित्त खारफै। खमत ॥ १२ ॥ गमन आकाश करै तसु, खेचर पंखी कहिजे जासके। हास्य कौतुहल दिक करी, हण्या हणाया हुवै बलि तासकै ॥ खमत ॥ १३॥ पांच. भेद तिर्यश्च ये, मन बिमना इन्द्रिय धर पांचके ॥ सब प्रते सीन जोग सूखमत खामना करूं तज खांचकै ॥ खमत ॥ १४ ॥ . चौदह लाख योनि मनुषनी, सूत्र विषै भाषी जिनरायकै। तसु मल मूत्रादि मंही, समूर्छिम मनु उपजै आयकै ॥ खमत ॥ १५ ॥ ये, चौरासी लख जाणिये, जीवां जोणि जे उपजण ठामक। बारम्बार