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जैन रत्नाकर
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जैन सिद्धान्त जीव जीवे ते दया नहीं, मरे ते हिंसा मत जान । मारणवाला ने हिंसक कह्यो, नहिं मारे ते दया गुण खान ।।
क्षमत क्षामना की ढाल
॥दोहा॥ व्रत-धारक भवि शुद्ध मन, खमत खामना सार । निरमल आतम किम करै , आखू ते अधिकार ॥१॥ सरल पणे वच काय तूं , मन थी कपट निवार । नमन भाव दिल आणिनें , खमाविये तज खार ॥२॥
॥ ढाल ॥ (देशी-संभव साहिब समरिये ) सात लाख योनि महीधरा, सात लाख अप् पाणीनो जोणिके। सात लाख तेउ अग्मिनी, वायु पिण इतनी कही गोणिकै । खमत खामना तेह थी॥१॥ एक जीव इक तनु मंही, तेह प्रत्येक वनस्पति कायकै । दश लख योनि जिन कही, चौदह लख साधारण तायकै॥ खमत ॥ २॥ जीव अनन्ता एकसा, एक शरीर में रह्या तिण न्यायकै। लीलण फूलण आदि में, जमीकन्द अंकूरा मांयकै । खमत ॥ ३ ॥ सूक्ष्म बादर बिहुं परै, क्रोध भाव आण्या हुवै कोयकै। त्रिविध २ म्हायरै, मिच्छामि दुकहं छै अवलोयकै ॥ खमत ॥४॥ बादर पांचं कायनें, हणी हणाई निज पर काजकै।