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रावणका दिग्विजय ।
हुए मृगकी छाया इस शिलामें पड़ी है और उसको देखकर मैंने बाण छोड़ा है । क्यों कि विना स्पर्शके इस शिलाका होना कोई नहीं जान सकता है। ऐसी उत्तम शिला तो वसु राजाके योग्य है।
उसने यह बात जाकर, वसु राजाको, एकान्तमें, कही। वसु राजाने प्रसन्न होकर, वह शिला अपने यहाँ मँगाली
और उस शिकारीको बहुतसा धन दिया। - वसु राजाने गुप्त रीतिसे उस शिलाकी एक आसन"वेदी बनवाई फिर उसको सदैव गुप्त रखनेके लिए उसने वेदी बनानेवाले कारीगरोंको मखा डाला । कारण
'नात्मीयाः कस्यचिन्नृपः।' ( राजा किसीके नहीं होते) बादमें उस वेदी पर चेदी देशके राजाने अपना सिंहासन रक्खा । वेदी किसीको दिखाई नहीं देती थी, इस लिए अबुध-अज्ञान-लोग समझने लगे कि, राजाके सत्यके प्रभावसे, आसन अधर रह रहा है और सत्य बोलनेके प्रभावसे ही संतुष्ट होकर, देवता वसु राजाके पास रहते हैं-उसकी सेवा करते है । इस प्रकारसे चारों तरफ उसकी प्रशंसा होने लगी । इस प्रशंसासे भीत होकर, अनेक राजा उसके वशमें आगये । कारण
'सत्या वा यदि वा मिथ्या प्रसिद्धि यिनी नृणाम् ।' १ सिंहासन रखनेकी वेदिका (चबूतरा)