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रावणका दिग्विजय ।
स्फालन, और पशुछेद आदि महा दुःखदायी सात दारुण नरक रावणने देखे । उनमें अपने सेवकोंको दुःख पाते देख रावणने वहाँके रक्षक परमाधार्मीकोंको-जैसे गरुड साँको त्रस्त करता है वैसे-त्रसित-पीड़ित-कर दिया; और उन कल्पित नरकोंका ध्वंसकर उसमें रहे हुए अपने आश्रित सेवकोंको और अन्य सब कैदियोंको छुड़वा लिया ? ' बड़े पुरुषोंका आगमन किसके कष्ट नहीं मिटाता है ?'
नरकके रक्षक रोते चिल्लाते, दोनों हाथ ऊँचे कर दुहाई देते, यमराजके पास गये, और सारे समाचार उन्होंने उसको सुनाये । सुनकर साक्षात् दूसरे 'यम' के समान प्रतिभासित होता हुआ युद्ध रूपी नाटकका सूत्रधार यमराज अपनी सेना ले क्रोधसे लाल आँखें करता हुआ; युद्ध करनेके लिये नगरसे बाहिर आया। युद्ध प्रारंभ होगया। सैनिक सैनिकोंके साथ, सेनापति, सेनापतियोंके साथ
और क्रोधी यमराज क्रोधी रावणके साथ जुट गये-युद्ध करने लगे।
१ नरकोंकी कल्पना करके अपराधियोंको तपाया हुआ शीशा "पिलाना; पत्थरकी शिलापर पछाड़ना; कुल्हाड़ीसे छेदन करना आदि दुःख ।
२ नरकमें जैसे परमाधामी देव दुःख देते हैं वैसे ही यहाँ भी नाम 'दिया गया था।