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________________ रावणका दिग्विजय। verir UVVVV माँगी। फिर लंका और पुष्पक विमानको उसने अपने अधिकारमें कर लिया। तत्पश्चात् विजयलक्ष्मी रूप लतामें पुष्पके समान उस पुष्पक विमानमें बैठकर रावण समेतगिरि-समेत शिखर-पर अहंत प्रतिमाकी वंदना करनेके लिए गया । वंदना करके नीचे उतरते सत्य रावणने सेनाकी कल कल ध्वनिके साथ वनके हाथीकी गर्जना सुनी । उसी समय प्रहस्त नामक एक प्रतिहारीने आकर रावणसे कहा:-" हे देव ! यह हस्ति रत्न आपका वाहन बननेके योग्य है ।" सुनकर रावण वहाँ गया और उसने उस इस्तिको, उस वन गजेंद्रको-जिसके दांत ऊँचे और लंबे थे जिसके नेत्र मधु, या पिंगल-दीपशिखा के वर्णवाले थे; जिसका कुंभस्थल शिखरके समान उन्नत था; मद बहानेवाली नदीका जो उद्गमस्थान-गिरिथा; और जो सात हाथ ऊँचा और नौ हाथ लंबा थाक्रीडामात्रसे ही अपने वशमें कर लिया । फिर उस पर सवारी की । उसपर बैठा हुआ रावण ऐसा मालूम होने लगा मानो 'इन्द्र' अपने ऐरावत हाथीपर बैठा है। रावणने उसका नाम 'भुवनालंकार' रक्खा । हाथी को हाथियोंके साथमें बँधवा रावणने वह रात वहीं विताई । रावणद्वारा यमराजाका पराभव। प्रातःकाल ही रावण सपरिवार सभामें बैठा हुआ था। उस समय पहरेदारसे आज्ञा मँगवाकर ' पवनवेग' नामक
SR No.010289
Book TitleJain Ramayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGranthbhandar Mumbai
Publication Year
Total Pages504
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size31 MB
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