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रावणका दिग्विजय ।
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wwwwwwwwwwwwwwwwwwm र्थकी तरफ कुछ भी लक्ष नहीं दिया; प्रत्युत विशेषरूपसे ध्यानमें दृढ़ होकर वह पर्वतकी प्रतिस्पर्धा करने लगा। उस समय आकाशवाणी हुई 'साधु, साधु'। इस देववाणीको सुनकर चकित, भीत हो यक्षसेवक तत्काल ही वहाँसे भाग गये । उसी समय आकाशसे, उतरकर एक हजार विद्याएँ दिशा-विदिशाओंको प्रकाशित करती हुई रावणके सामने आखड़ी हुई और कहने लगीं-"हम तुम्हारे अधीन हैं।"
प्रज्ञप्ति, रोहिणी, गौरी, गांधारी, नभःसंचारिणी, कामदायिनी, कामगामिनी, अणिमा, लघिमा, अक्षोभ्या, मन:स्तंभनकारिणी, सुविधाता, तपोरूपा, दहनी, विपुलोदरी, शुभप्रदा, रजोरूपा, दिनरात्रिविधायिनी, वज्रोदरी, समाकृष्टि, अदर्शनी, अजरामरा, अनलस्तंभनी, तोयस्तंभनी, गिरिदारणी, अवलोकिनी, वन्हि, घोरा, वीरा, भुजंगिनी, वारिणी, भुवना, अवंध्या, दारुणी, मदनाशनी, भास्करी, रूपसंपन्ना, रोशनी, विजया, जया, वर्द्धनी, मोचनी, वाराही, कुटिलाकृति, चित्तोद्भवकरी, शांति, कौबेरी, वशकारिणी, योगेश्वरी, बलोत्साही, चंडा, भीति, प्रवर्षिणी, दुर्निवारा, जगत्कंपकारिणी और भानुमालिनी आदि एक हजार महाविद्याएँ, पूर्व सुकृतके उदयसे महात्मा रावणको थोड़े ही दिनोंमे सिद्ध होगई । संवृद्धि, जूभणी, सर्व हारिणी, व्योमभामिनी और इन्द्राणी, पाँच विद्याएँ कुंभ