________________
२४
जैन रामायण द्वितीय सर्ग ।
अग्रभागपर दृष्टि जमा तीनों भाई जाप करने लगे । दोही पहरमें उन्होंने अष्टाक्षरी विद्या साधली। फिर उन्होंने सोलह अक्षरी विद्याको-जो दश हजार जापसे सिद्ध होती है-सिद्ध करनेके लिए जप करना प्रारंभ किया।
उस समय जंबूद्वीपका स्वामी अनाहत नामक देवता अपनी स्त्रियों सहित आया। उसने उन तीनोंको मंत्र साधते देखा। उसके मनमें, मंत्रसाधनमें विघ्न डालनेकी इच्छा हुई । इस इच्छाको पूरी करनेके लिए उसने अनुकल उपसर्गकर उनको क्षुब्ध करनेके लिए, अपनी स्त्रियोंको भेजा। स्त्रियाँ उनके सुन्दर रूप यौवनको देखकर स्वयमेव क्षुब्ध हो गई; वे अपने स्वामीके शासनको भूल उनके रूप यौवनपर मुग्ध होगई । उनको निर्विकारी, स्थिर आकृतिवाले और मौन बैठे देख, कामांध हो वे बोली:" अरे ! ध्यानमें जड़ बने हुए वीरो ! हमारी तरफ तो जरा यत्नपूर्वक देखो! हम देवियाँ भी तुम्हारे वश होगई हैं ! अब तुम्हें कौनसी दूसरी सिद्धि चाहिए ? अब विद्या सिद्धि के लिए क्यों यत्न करते हो? ऐसा कष्ट सहनेकी आवश्यकता नहीं है। विद्याको तुम क्या करोगे ? अब तो हम साक्षात देवियाँ ही तुम्हें सिद्ध होगई हैं। अतः हे देव समान पुरुषो! तीनलोकके सबसे रमणीय प्रदेशोंमें चलकर तुम हमारे साथ यथारुचि क्रीड़ा करो।" बड़ी कामनाके साथ उन यक्षिणियोंने कहा; परन्तु धैर्षशाली तीनों भाई