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नाम रक्खा गया । एक वार फिरता हुआ वह वृद्ध वृषभके मृत्युस्थानपर पहुँच गया । पूर्व जन्मके स्थानको देखकर, उसको जातिस्मरण ज्ञान हो आया । इसलिए उसने उसी स्थानपर एक चैत्य बनवाया । चैत्यकी एक ओरकी भींतपर उसने एक चित्र बनावाया । उस चित्रमें दिखाया कि, एक वृद्ध बैल मरणासन्न पड़ा हुआ है, उसके कानमें एक व्यक्ति नवकार मंत्र सुना रहा है और उसके पास ही एक कसा कसाया घोड़ा खड़ा है । फिर उसने चैत्यके रक्षकोंसे कहा कि, जो व्यक्ति इस चित्रके परमार्थको समझ जाय उसकी मुझको सूचना देना । कुमार अपने महल में गया ।
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एकवार पद्मरुचि सेट चैत्यमें वंदना करनेके लिए - आया, वहाँ अर्हतको वंदना करके उसने भींतपर बने हुए चित्रको देखा । उसको देखकर, विस्मित हुआ और । बोला:-- “ इस चित्रमें बताई हुई बातें तो सब मेरे साथ बीती हुई हैं । " रक्षकोंने जाकर राजकुमार वृषभध्वजको यह खबर दी । राजकुमार तत्काल ही मंदिरमें आया । उसने सेठसे पूछा:- " क्या तुम इस चित्रका वृत्तान्त जानते हो ? " सेठने उत्तर दिया:---- " मरते हुए बैलके कानमें मुझे नवकार मंत्र सुनाते देखकर ही किसीने यह चित्र बनाया है । सुनकर वृषभध्वजने सेठको नमस्कार किया और कहा:-- "हे भद्र ! यह वृद्ध वृषभ मैं ही हूँ | नवकार मंत्र के प्रभावसे मैं राजकुमार बना हूँ । आपने कृपाकरके
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