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________________ ४३६ जैन रामायण दसवाँ सर्ग। क्षमा कीजिए।" उसके वचन सुन, लोग फिरसे मुनिकी पूजा करने लग गये । वेगवती भी उसी समयसे परमा श्रद्धालु श्राविका होगई । उसको रूपवती देखकर शंभुराजाने उसको माँगा। श्रीभूतिने उत्तर दिया:-- " मैं किसी. मिथ्या-दृष्टिको अपनी कन्या नहीं दूंगा।" इससे शंभु, राजाने श्रीभूतिको मारडाला और वेगवीके साथ बलात् संभोग किया । उस समय उसने शाप दिया:--" भवां-- तरमें मैं तेरी मृत्युका कारण होऊँगी।" तत्पश्चात शंभु राजाने वेगवतीको छोड़ दिया उसने हरिकान्ता साध्वीके पास जाकर दीक्षाली और मरकर ब्रह्मदेवलोकमें गई । वहाँसे चवकर वह जनक राजाकी पुत्री जानकी हुई; और पूर्वभवके शापके कारण वह शंभु राजाके जीव राक्षस पति रावणकी मृत्युका हेतु हुई । पूर्व भवमें उसने सुदर्शन मुनिपर मिथ्या दोष लगया था, इस लिए इस भवमें लोगोंने भी उसपर मिथ्या दोष लगाया। शंभु राजाका जीव भव भ्रमण करके कुशध्वज नामा ब्राह्मणकी स्त्री सावित्रीके गर्भसे प्रभास नामा पुत्र हुआ। कुछ कालबाद उसने विजयसेन नामा मुनिके पाससे दीक्षा ली। दुर्द्धर तप करता हुआ वह अनेक प्रकारके परिसह सहने लगा। प्रभास मुनिने एकवार विद्याधरोंके राजा कनकमभको, इन्द्रके समान समृद्धि सहित संवेतशिखरकी यात्राको जाते हुए देखा । मुनिने उस समय नियाणा
SR No.010289
Book TitleJain Ramayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGranthbhandar Mumbai
Publication Year
Total Pages504
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size31 MB
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