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अपनी जीभ से शस्त्र के फुलको उठा लूँ । इनमें से आप कहें वही दिव्य मैं करने को तैयार हूँ । "
उस समय अन्तरिक्षस्थ नारदने और सिद्धार्थने और भूमिस्थ लोगोंने, कोलाहलको बंद करके, कहाः – " हे राघव ! सीता वास्तव में सती है ! सती है ! महा सती है ! इसमें आपको लेशमात्र भी संदेह नहीं करना चाहिए ।"
रामने कहा :- "हे लोगो ! तुम सर्वथा मर्यादा विहीन हो । मेरे हृदय में संकल्प दोष तुम्हारे ही कारण से उत्पन्न हुआ है । पहिले तुम्हींने सीताको दूषित बताया था और आज तुम्हीं उसे यहाँ पर सती बता रहे हो । यहाँसे जाकर, फिर तुम कोई तीसरी ही बात कहने लगोगे । पहिले सीता कैसे दूषित थीं और अब वे कैसे शीलवान हो गईं ? फिर भी तुम उन्हें दूषित बता सकते हो; इसलिए मेरी यही इच्छा है कि, सीता सबकी प्रतीतिके लिए अग्नि-दिव्य करें - अग्निप्रवेश करें । "
तत्पश्चात रामने तीन सौ हाथ लंबा चौड़ा और दो पुरुष प्रमाण गहरा खड्डा करवाया और उसको चंदनकी लकड़ियोंसे भरवाया ।
वैताढ्य गिरिकी उत्तर श्रेणीमें हरिविक्रम राजाका जयभूषण नामा कुमार था । उसके आठ सौ विवाहित स्त्रियाँ थीं। एक बार उसने अपनी किरणमंडला नामा स्त्रीकोहिमशिख नामा उसके मामाके साथ सोते हुए देखा । उसको क्रोध उत्पन्न हुआ । इसलिए उसने किरणमंडलाको