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सीताकी शुद्धि और व्रतग्रहण। ४२५ निकाल दिया। फिर उसको वैराग्य हो आया, इसलिए उसने दीक्षा लेली । किरणमंडला मरकर, विद्युदंष्ट्रा नामा राक्षसी हुई । जयभूषण दिव्यवाले दिनकी पहिली रातको अयोध्याके बाहिर काउसग्ग करने लगे । विद्युदंष्ट्रा वहाँआकर, उनको सताने लगी । मुनि अचल रहे । शुभ ध्यानके बलसे उनको दिव्यवाले दिन ही केवलज्ञान उत्पन्न हुआ । केवलज्ञान महोत्सव के लिए इन्द्रादि देव वहाँ आये। उसी समय उधर सीता शुद्धिके लिए अग्निमें प्रवेश करनेवाली थीं। यह बात देवताओंने देखी । उन्होंने इन्द्रसे जाकर कहा:--" हे स्वामी! लोगोंके मिथ्या अपवादसे सीता आज अग्निमें प्रवेश कर रही हैं ।" सुनकर इन्द्रने अपनी प्यादा सेनाके सेनापतिको सीताकी सहायताके लिए 'भेजा और आप जयभूषण मुनिका केवल ज्ञान महोत्सव करनेमें रत हुआ।
उधर रामकी आज्ञासे चंदनपूरित खड्डेमें सेवकोंने आग लगा दी । अग्नि भयंकर रूप धारण कर जल उठी । आँखोंके लिए उसकी ओर देखना कठिन हो गया। अग्निकी विकराल ज्वालाओंको देखकर, रामने हृदयमें सोचा,अहो ! यह कार्य तो अति विषम होगया है । यह महा सती तो अभी निःशंक होकर अग्निमें प्रवेश करेगी। प्रायः 'देवकी और दिव्यकी विषम गति होती है । सीता मेरे साथ वनमें गई रावणने उसका हरण किया। फिर मैंने उसको अरण्यमें छोड़ा, और अन्तमें अग्निप्रवेशका यह कष्ट उप