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________________ सीताकी शुद्धि और व्रतग्रहण । ४२३ www.rrmmmmmmm लगेः-" हे देवी! अपने नगर और गृहमें प्रवेश कर उनको पवित्र कीजिए।' . सीताने उत्तर दियाः--" हे वत्स ! शुद्धि प्राप्त करनेके बाद मैं नगरमें प्रवेश करूँगी; क्योंकि ऐसा हुए बिना. अपवाद कभी शान्त नहीं होगा।" सीताका यह दृढ निश्चय उन्होंने जाकर, रामको सुनाया। राम वहाँ आये और सीतासे न्याय निष्ठुर वचन बोले:--" तुम रावणके यहाँ रहकर भी यदि शुद्ध रही हो; यदि रावणने तुमको अपवित्र न किया हो; तो अपनी शुद्धिके लिए सबके सामने दिव्य करो।" सीताने मुस्कराते हुए रामसे कहा:--" आपके समान अन्य ऐसा कौन बुद्धिमान होगा; जो दोष जाने विना ही किसीको वनमें छोड़ देता होगा। यह भी आपकी विचक्षणता ही है कि दण्ड देकर अब आप परीक्षा करने बैठे हैं। जो हो सो । मैं परीक्षा देनेको तैयार हूँ। __ सीताके वचन सुन, राम म्लानमुख होकर, बोले:-- "हे भद्रे ! मैं जानता हूँ कि, तुम सर्वथा निर्दोष हो, तो भी लोगोंके हृदयोंमें जो दोष भाव उत्पन्न हुए हैं। उनका निवारण करना आवश्यकीय है।" सीताने कहा:-" मैं पाँचों प्रकारके दिव्य करनेको तैयार हूँ। कहो तो अग्निमें प्रवेश करूँ; कहो तो मंत्रित तांदुल भक्षण करूँ; कहो तो ( कच्चे धागोंके ) तराजूपर चहूँ, कहो तो पिघला हुआ शीशा पीऊँ और कहो तो
SR No.010289
Book TitleJain Ramayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGranthbhandar Mumbai
Publication Year
Total Pages504
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size31 MB
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