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ऐसा ही होगा कह कर वे वहाँसे उठ गये । उन्होंने जाकर, नगरके बाहिर विशाल मंडप बनवाया । उसके अंदर गेलेरियाँ - बैठकें बनवाई । उनमें राजा लोग, मंत्रीगण, नगरवासी, राम लक्ष्मण, और विभीषण, सुग्रीव आदि खेचर आकर बैठे । रामने सुग्रीवको, सीताको लानेकी आज्ञा दी । सुग्रीव उठकर पुंडरीकपुर गया । उसने सीताको नमस्कार कर कहा :- " हे देवी ! रामने आपके. लिए पुष्पक विमान भेजा है, इसलिए इसमें सवार होकर अयोध्या चलिए । "
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सीताने उत्तर दिया:-- “ रामने मुझे जंगलमें छुड़वा दिया । वह दुःख भी अब तक मेरे हृदयसे शान्त नहीं हुआ, तो फिर दूसरा दुःख देने को बुलानेवाले रामके पास मैं कैसे चलूँ ? ”
सुग्रीवने फिरसे नमस्कार कर कहाः " हे सती ! कोप न करो। रामने आपकी शुद्धि करनेका निश्चय किया. है । मंडप तैयार है | वे अन्यान्य राजाओं और पुरवासि -- यों सहित वहीं बैठे हुए हैं ? "
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सीता यह बात तो - शुद्ध होनेकी परीक्षा तो- पहिलेही से चाहती थीं। इसलिए वे सुग्रीवकी अन्तिम बात सुनकर विमान में सवार हो गई। सुग्रीव सहित वे अयोध्या के पास. महेन्द्रोद्यानमें जाकर उतरीं । वहाँ लक्ष्मणने और अन्यान्य राजाओंने अर्ध समर्पण कर उनको नमस्कार किया। फिर लक्ष्मणादि सब राजा उनके सामने बैठ गये और कहने