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जैन रामायण नवाँ सर्ग । • wwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwww.... आपको यह संदेश कहलाया है कि-"किसी नीतिशास्त्रमें, किसी कानूनमें या किसी देशमें क्या एक पक्षके कहनेहीसे दूसरे पक्षवालेको-जाँच किये विना ही-अपराधी समझकर, दण्ड देनेका दस्तूर है ? आप सदैव विचार पूर्वक कार्य करनेवाले हैं; तथापि यह कार्य आपने विना विचारे ही किया है । मगर मेरे प्रति जो अविचार हुआ है, उसका कारण मैं अपने भाग्यको समझती हूँ। आप तो सदा निर्दोष ही हैं । तो भी हे प्रभो! एक बात है । मैं निर्दोष. हूँ। तो भी आपने लोगोंके कहनेसे मेरा त्याग कर दिया है । इसी भाँति कहीं मिथ्यादृष्टि लोगोंके कहनेसे जैन धर्मका त्याग मत कर देना।" इतना कहकर सीता फिर मूञ्छित हो गई। थोड़ी देरके बाद उन्हें चेत हुआ। वे फिर कहने लगीं-" अरे! राम मेरे विना जीवित कैसे रहेंगे ? हाय ! मैं मारी गई !"
सीताकी कहलाई हुई बातें कृतान्तवदनके मुख से सुनकर, राम मूर्छित होगये । तत्काल ही लक्ष्मणने ससंभ्रम' वहाँ आकर उनपर चंदनका जल छिड़का । राम सचेत हुए और कहने लगे:-" वह महा सती सीता कहाँ है ? जिसको मैंने लोगोंके कहनेसे वनमें छोड़ दिया है ?"
लक्ष्मण बोले:-“हे स्वामी ! अबतक महा सती सीता अपने प्रभावस, जन्तुओंके हाथोंसे, बची हुई होगी।