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________________ सीताकी शुद्धि और व्रतग्रहण। ४०५ ~~~~~~~mmmmmmmmmmm. अतः वे आपके विरहदुःखसे मर जायें इसके पहिले ही आप जाइए और उनको खोजकर ले आइए।" लक्ष्मणके वचन सुन, राम कृतान्तवदन सेनापति और कुछ अन्यान्य खेचरोंको लेकर विमानमें बैठे और उस अरण्यमें पहुंचे जहाँ कृतान्तवदन सीताको छोड़ आया था। वहाँ रामने प्रत्येक जलाशय, प्रत्येक पर्वत प्रत्येक वृक्ष और प्रत्येक लताको देखा, मगर उन्हें कहीं सीताका पता न मिला । इससे रामको बहुत दुःख हुआ। उन्होंने सोचा-" जान पड़ता है कि कोई सिंह या हिंसक प्राणी उसको खागया है।" बहुत ढूँढने पर भी सीताका कहीं पता नहीं चला, तब निराश होकर राम वापिस अयोध्या लौट गये । सारे शहरमें यह वात फैल गई। नगरवासी बार बार सीताके गुणोंकी प्रशंसा और रामकी निंदा करने लगे। रामने साश्रुनयन हो, सीताकी मृत्युक्रिया की। रामको सारा संसार सीतामय भासित होने लगा। उनके हृदयमें, उनकी आँखोंमें और उनकी वाणीमें सीताके सिवा और कुछ नहीं था। सीता किसी स्थान पर यी; परन्तु उस समय रामको ज्ञात नहीं हुआ। . सीताका पुत्रयुगलको जन्म देना। .. वज्रजंघ राजाके यहाँ सीताने पुत्रयुगलका प्रसव किया। अनंगलवण और मदनांकुश उनका नाम रक्खा। महद् हृदयी राजा वज्रजंघने अपने पुत्र उत्पन्न होनेकी
SR No.010289
Book TitleJain Ramayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGranthbhandar Mumbai
Publication Year
Total Pages504
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size31 MB
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