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सीताकी शुद्धि और व्रतमा । होते हैं। तुम मुझे अपने भाई भामंडलक समान समझो और मेरे घर चलो।
'स्त्रीणां पतिगृहादन्यत् स्थानं भ्रातृनिकेतनम् ।' (पतिके घरके सिवा दूसरास्थान स्त्रियों के लिए भाईका घर होता है । ) रामने लोकापवादसे तुम्हारा त्याग किया है। अपनी इच्छासे नहीं। इसलिए मैं समझता हूँ कि वे अपनी इस कृति पर पश्चाताप करते हुए तुम्हारे समान ही दुखी होंगे । विरहातुर दशरथ कुमार चक्रवाक पक्षीकी भाँति व्याकुल होकर थोड़े ही समयमें तुम्हें खोजनेके लिए निकलेंगे।"
सीताने वज्रजंघके साथ पुंडरीकपुरमें जाना स्वीकार किया । उस निर्विकारी राजाने पालकी मँगवाई । सीता उसमें सवार होकर, मिथिलापुरीमें ही जाती हों उस तरह पुंडरीकपुरमें गई। वज्रजंघने उनको रहनेके लिए एक घर बता दिया । वे उसमें रह कर धर्मध्यानमें अपने दिन निकालने लगीं।
रामका सीताको लेने जाना। सेनापति कृतान्तवदन वापिस अयोध्यामें गया। उसने रामके पास जाकर कहा:-" मैं सीताको सिंहनिनाद नामा वनमें छोड़ आया हूँ। वहाँ सीता बारबार मूच्छित होती थीं; बार बार सचेत होती थीं और करुण-रुदन करती थीं । अन्तमें थोड़ा बहुत धैर्य धारण कर उन्होंने