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वह कृपालु राजा साताके पास आया। राजाको देख उन्हें शंका हुई। उन्होंने अपने वस्त्रालंकार उतार कर राजाके सामने रख दिये।
राजाने कहा:-" हे बहिन ! तुमको कुछ डर नहीं हैं। ये वस्त्रालंकार तुह्मारे ही हैं। तुह्मीं इनको धारण करो। तुह्मारा स्वामी कौन निर्दय शिरोमाण है कि, जिसने तुह्मारा ऐसी स्थितिमें परित्याग कर दिया है ? जो बात हो सो स्पष्ट कहो । मनमें किसी प्रकारकी शंका न करो। मुझे तुह्मारा कष्ट देखकर दुःख हो रहा है।"
राजाका मंत्री सुमति कहने लगा:-" ये पुंडरीकपुरके स्वामी वज्रजंघ राजा हैं । इनके पिताका नाम गजवाहन है। बन्धुदेवी रानीकी कूखसे इन्होंने जन्म लिया है । ये महा सत्वधारी हैं; परनारी सहोदर हैं; परम श्रावक हैं। ये इस वनमें हाथी पकड़नेको आये थे। अपना कार्य करके वापिस जा रहे थे, इतनेहीमें इन्होंने तुम्हारा आर्त-नाद सुना। इन्हें दुःख हुआ। इसलिए ये तुम्हारे पास आये हैं। तुम्हें जो कुछ दुःख हो कहो।"
सीताने उनके कथनपर विश्वास किया और रोते हुए अपना सारा कष्ट कह सुनाया । सुनकर राजा और मंत्री भी रो पड़े । फिर राजाने निष्कपट भावसे कहा:-"तुम मेरी धर्म बहिन हो; क्योंकि एक धर्मवाले परस्पर बन्धु ही