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सीताकी शुद्धि और व्रतग्रहण।
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सर्ग नवाँ।
सीताकी शुद्धि और व्रतग्रहण ।
सीताका पुंडरीकपुरमें जाना। होता भयके मारे पागलोंकी तरह इधर उधर फिरने लगीं; और पूर्व कर्मसे दूषित बने हुए अपने आत्माकी निंदा करने लगीं । बार बार, हुबक हुबककर वेरोती थीं। गिर जाती थीं। फिर उठती थ, चलती थीं, फिर गिर जाती थीं। इस भाँति वे एक ओर चली जा रही थीं। उस समय उन्होंने सामनेसे एक सैन्यको आते हुए देखा। उसको देख, वे वहीं खड़ी हो गई और स्थिर चित्त होकर नवकार मंत्रका जाप करने लगीं। . सैनिकोंने सीताको देखा। वे उनसे डरगये । वे सोचने लगे:-" यह अपूर्व दिव्य रूपावली कौन सुंदरी है ? जो इस तरह पृथ्वीमें विचरण कर रही है ?"
सीता थोड़ी देर स्थिर रहीं । फिरसे उन्हें अपनी हालतको यादकर रोना आगया । उनका करुण रुदन उस सैन्यके राजाने सुना । उनके मनस्ताप और रुदनसे राजाने सोचा कि यह कोई गर्भिणी और सती स्त्री जान पड़ती है।