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________________ सीताको रामचन्द्रका त्यागना। ३९९ mmmmmmmmmmmmmmmmmmm... ... .. ... ...... अत्यन्त क्रोध आया । उन्होंने रामको भी ऐसा करनेसे बहुत रोका; परन्तु रामने आज्ञा देकर उन्हें आग्रह करनेसे रोक दिया। इसलिए लक्ष्मण रोते हुए वहाँसे चले गये। फिर रामने मुझको यह कार्य करनेकी आज्ञा दी। हे देवी! मैं बहुत पापी हूँ। इसीलिए हिंसक प्राणियोंसे भरे हुए मृत्युके गृहरूप इस अरण्यमें मैं आपका छोड़कर जाता हूँ। आप केवल अपने ही प्रभावसे इस अरण्यमें जीवित रह सकेंगी।" सेनापतिके वचन सुनकर, सीता मूर्छित होकर रथमेसे पृथ्वीपर जा गिरी। सेनापति उनको मरी समझ, अपने को अत्यन्त पापी मान करुणाक्रंदन करने लगा। थोड़ी देर बाद वनके शीतल वायुसे सीताको कुछ चेत आया। मगर वे फिरसे मूर्छित होमई । इस तरह बहुत देरतक वे मूर्छित सचेत होती रही, फिर स्वस्थ होकर बोली:-" यहाँसे अयोध्या कितनी दूर है ? राम कहाँ हैं?" सेनापतिने कहा:-" हे देवी ! अयोध्या नगरी यहाँसे बहुत दूर है। उसके लिए आप क्या पूछती हैं ? और उग्र आज्ञा करनेवाले रामकी तो बात ही क्यों करती हैं ?" . उसके ऐसे वचन सुनकर, राम-भक्त सीताने कहाः"हे भद्र ! तू रामसे जाकर, मेरा इतना संदेश कहना कि-"जो आप लोकापवादसे डरे थे तो फिर आपने मेरी
SR No.010289
Book TitleJain Ramayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGranthbhandar Mumbai
Publication Year
Total Pages504
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size31 MB
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