________________
सीताको रामचन्द्रका त्यागना |
स्वयं मैंने भी ये बातें सुनी हैं और ये लोग भी मेरे कहनेसे सब समाचार लेकर आये हैं । इसलिए सीताका जैसे मैंने स्वीकार किया है, वैसे ही उसका त्याग कर दूँगा तो फिर लोग हमें कलंकित नहीं करेंगे । "
wwwww
३९७
--
लक्ष्मण बोले :- " आर्य ! लोगोंके कहनेसे सीताका त्याग न करना । क्योंकि लोग तो जीमें आता है, वैसे ही बोलते हैं । कोई उनका मुँह बंद नहीं कर सकता है। लोग राज्य में सुव्यवस्था होनेपर भी राजाको दोषी बतायाही करते हैं । इसलिए राजाको चाहिए कि, या तो वह ऐसे लोगोंको दण्ड दे या उनकी उपेक्षा करे । "
"
रामने कहा :-- “ यह ठीक है कि, लोग ऐसे होते हैं; परन्तु जो बात सब लोगों के विरुद्ध हो - सब लोग जिस बातको नापसंद करते हों, उसका यशस्वी पुरुषों को त्याग कर देना चाहिए | "
तत्पश्चात रामने कृतान्तवदन नामा सेनापति से कहा:" यद्यपि सीता सगर्भा है, तथापि उसको लेजाकर अरयमें छोड़ आ । " यह सुनकर लक्ष्मण रो पड़े और रामके चरण पकड़कर कहने लगे :- " हे आर्य ! महासती सीताका त्याग करना योग्य नहीं है । " रामने कहा:इस विषय में अब तुम मुझसे कुछ न कहो । " यह सुनकर लक्ष्मण वस्त्रसे सुख ढँक रोते हुए अपने महल में चले गये | रामने कृतान्तवदनसे कहा:- “ समेत शिखर
"