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________________ ३९६ जैन रामायण आठवाँ सर्ग । जाकर, भोग किये विना रहने दिया होगा ? रामने तो इतना भी नहीं सोचा । मगर सच है-- न रक्तो दोषमीक्षते ।' ( रागी मनुष्य दोष नहीं देखते हैं। ) इस प्रकार सीताके विषयमें कलंककी बातें सुनकर, राम पुनः महलमें लौट गये। दूसरे दिन फिरसे उन्होंने गुप्तचरोंको भेजा। . सीताका परित्याग। राम सोचने लगे:-- जिस सीताके लिए मैंने राक्षस कुलका भयंकर रीतिसे नाश किया उसी सीताके ऊपर यह कैसा कलंक आया है ? मैं जानता हूँ कि, सीता महासती है; रावण स्त्रीलोलुप था और मेरा कुल निष्कलंक है । अब मुझको क्या करना चाहिएं ?" __रामके पास लक्ष्मण, सुग्रीव और विभीषण आदि बैठे हुए थे । उसी समय गुप्तचर आये। उन्होंने वे सब बातें कह सुनाई जो बातें लोग सीताके विषयमें कहते थे । सुनकर लक्ष्मणको बहुत क्रोध आया। वे भ्रकुटी चढ़ाकर बोले:-"जो मिथ्या कारणोंसे दोषकी कल्पना करके सती सीताकी निंदा करते हैं उनका मैं काल हूँ।" रामने कहा:--" बन्धु ! शान्त होओ। हमने शहरके समाचार लाकर सुनानेके लिए जो लोग नियत किये थे;
SR No.010289
Book TitleJain Ramayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGranthbhandar Mumbai
Publication Year
Total Pages504
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size31 MB
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