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सीताको रामचन्द्रका त्यागना । ३९५ रावण पक्का स्त्रीलंपट था, इसलिए वह सीताके साथ भोग किये विना न रहा होगा । भोग चाहे उसने सीताको समझाकर किया हो और चाहे जबर्दस्तीसे किया हो । लोग जो कुछ कहते हैं, वही हमने आपके सामने निवेदन किया है । हे राम ! इस युक्ति पुरस्सर अपवादको आप सहन न कीजिए । हे देव ! आपने जन्मसे ही अपने कुलके समान कीर्ति उपार्जन की है। अब ऐसे मलिन अपवादको सहकर अपने यशको मलिन न होने दीजिए।"
राम कुछ न बोले । उन्होंने मन ही मन सोचा कि सीता कलंककी अतिथि होगई हैं।" प्रेम छोड़ना प्रायः अत्यंत कठिन कार्य है । कुछ देर बाद रामने बड़े धैर्यके साथ कहाः-" हे महापुरुषो ! तुमने अच्छा किया कि मुझको चेता दिया । राजभक्त पुरुष कभी किसी बातकी अपेक्षा नहीं करते हैं । मात्र स्त्रीके लिए मैं ऐसा अपयश नहीं सहूँगा।"
रामने अधिकारियोंको बिदा किया। उस रातको राम गुप्त रीतिसे अकेले महलके बाहिर निकले । शहरमें फिरते हुए उन्होंने स्थान स्थानपर लोगोंको इस प्रकार बातें करते सुना-" रावण सीताको ले गया । सीता चिरकालतक रावणके घरमें रही; तो भी राम उसको वापिस ले आये। और अब भी उसको सती समझते हैं । यह कैसे हो सकता है कि, स्त्रीलंपट रावणने सीताको, ले