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जैन रामायण आठवाँ सर्ग।
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" अच्छा उसके पैर ही लिखकर बताओ । हमें उनको देखनेकी बहुत इच्छा हो रही है।" __ सौतोंके आग्रहसे सरल प्रकृति सीताने रावणके चरण चित्रित किये । अकस्मात उसी समय राम वहाँ आगये । उनको देखते ही सौतें झठ कह उठी:--" स्वामी ! देखो आपकी प्रिया सीता अब भी रावणका स्मरण कर रही है। नाथ ! देखो सीताने रावणके दोनों चरण चित्रित किये हैं । सीता अब भी रावणहीकी इच्छा करती है । यह बात आप ध्यानमें रखिए ।" राम कुछ न बोले । गंभीरता धारण कर चुपचाप-सीताको ज्ञात भी नहीं हुआ-वे वापिस चले गये । सीताकी इस बातको सदोष बताकर, सौतोंने अपनी दासियोंके द्वारा लोगोंमें यह बात प्रकाशित की। इससे प्रायः लोग भी सीताको सकलंका बताने लगे।"
सीताको अशुभकी शंका होना। वसंत ऋतु आई । राम सीताके पास गये और कहने लगे:--" हे भद्रे ! तुम गर्भसे खेदित हो रही हो, इसलिए तुम्हारे विनोदार्थ यह वसंत ऋतु लक्ष्मी आई है । बकुल आदि वृक्ष स्त्रियोंके दोहदसे ही विकसित होते हैं। इसलिए चलो, हम महेंद्रोद्यानमें क्रीडा करने जायँगे ।" सीताने उत्तर दियाः-" नाथ ! मुझको देवार्चन करनेका दोहद हुआ है। इसलिए उस उद्यानके विविध भाँतिके सुगंधित पुष्पों द्वारा मेरा दोहद पूर्ण करो।"