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जैन रामायण आठवाँ सर्ग।
कोंका अभिप्राय समझकर तत्काल ही वहाँसे पक्षीकी तरह उड़कर लक्ष्मणके पास गये । उस कन्याका रूप एक पटपर चित्रित करके उन्होंने लक्ष्मणको बताया और अपना सारा वृत्तान्त भी उन्हें सुनाया। कन्याका रूप देखकर लक्ष्मण उसपर अनुरक्त होगये । इसलिए वे राम और अपनी राक्षस और वानर सेना सहित तत्काल ही रत्नपुरमें पहुँचे । लक्ष्मणने थोड़ी ही देरमें रत्नरथको जीत लिया। इस लिए उसने रामको श्रीदामा और लक्ष्मणको मनोरमा नामा अपनी कन्याएँ दे दी।
तत्पश्चात राम, लक्ष्मण वैताब्यगिरीकी सारी दक्षिण श्रेणीको जीतकर अयोध्यामें आये और सुखपूर्वक राज्य करने लगे।
सीतासे, उसकी सौतोंका ईर्ष्या करना । लक्ष्मणके सब मिलाकर सोलह हजार स्त्रियाँ और ढाई सौ पुत्र हुए । उनमेंसे विशल्या, रूपवती, वनमाला, कल्याणमाला, रत्नमाला, जितपद्मा, अभय वती और मनोरमा आठ पट्टरानियाँ हुई । इनके पुत्र मुख्य थे । उनके नाम ये हैं-विशल्याका श्रीधर, रूपवतीका पृथ्वी तिलक, वनमालाका अर्जुन, जितपद्माका श्रीकेशी, कल्याणमालाका मंगल मनोरमाका सुपार्श्वकीर्ति, रतिमालाका विमल और अभयवतीका सत्यकार्तिक ।