________________
थोड़े समय और यहाँ पर निवास कीजिए। क्योंकि आपकी सारी प्रवृत्तियाँ परोपकारके लिए ही होती हैं।' __ मुनियोंने उत्तर दिया:- वर्षाकाल बीत गया है; इस लिए अब हम यहाँसें विहार करके नीर्थयात्रा करेंगे; क्योंकि मुनि एक स्थानपर कभी नहीं रहते हैं। तुम इस नगरीमें घर घर अर्हतविंच स्थापन करवाओ जिससे फिर कभी कोई व्याधि नहीं होगी।"
तत्पश्चात सप्तर्षि वहाँसे उड़कर अन्यत्र गये । शत्रुघ्नने हरेक घरमें जिनबिंब स्थापित करवाये। जिससे सारे घर रोगमुक्त होगये। मथुरापुरीकी चारों दिशाओं में सप्तर्षियों की रत्नमय प्रतिमाएँ भी बनवाकर स्थापन करवाई गई।
उस समय वैताब्य गिरिकी दक्षिण श्रेणीके आभूषणरूप रत्नपुर नामके नगरमें रत्नस्थ नामा राजा था। उसके चंद्रमुखी नामा एक रानी थी। उसकी कूखसे मनोरमा नामा एक कन्या हुई। रूप भी उसका नामानुसार बहुत ही मनोरम-सुंदर-था। वह कन्या क्रमशः जवान हुई। एक दिन राजा सोच रहा था कि इस कन्याको किसे देना चाहिए, उसी समय अकस्मात वहाँपर नारद आगये। उन्होंने कहा कि कन्या लक्ष्मणके योग्य है । यह सुनकर, गोत्रवैरके कारण रत्नरथके पुत्रोंको क्रोध हो आया। इसलिए उन्होंने आँखके इशारे से अपने सेवकोंको, नारदको मारनेकी आज्ञा दी। बुद्धिमान नारद उठते हुए सेव