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उसी समय श्रावस्ती नगरीका रहनेवाला अंक नामा एक पुरुष-जिसको उसके बापने घरसे निकाल दिया था-सिरपर लकड़ियोंका गट्ठा रक्खे हुए उधरसे निकला। उसने अचलको देखा । दया आनेसे गहा नीचे उतार उसने अचलके पैरमेंसे काँटा निकाल दिया । अचल हर्षित हो, उसके हाथमें काँटा दे, बोला:-* भद्र ! तुमने बहुत उत्तम कार्य किया है। तुम मेरे परम उपकारी हो । तुम जब सुनो कि मथुरामें अचल राजा हुआ है, तब मथुरामें आना ।"
तत्पश्चात अचल वहाँसे कोशांबी नगरीमें गया । वहाँ उसने राजा इन्द्रदत्तको सिंह गुरुके पास धनुपका अभ्यास करते देखा। उसने भी सिंहाचार्य और इन्द्रको अपना धनुष-संचालन-चातुर्य दिखाया। उससे हर्षित होकर इन्द्रने उसको अपनी पुत्री दत्ताका पाणि ग्रहण करा दिया। कुछ भूमि भी उसको दी। सैन्य बल मिलनेपर अचलले अंग आदि कई देश जीत लिए । __एक बार वह सेना लेकर, मथुरापर चढ़ गया । वहाँ उसने अपने सापत्न वन्धु भानुप्रभ आदिको-युद्ध करके, बाँध लिया। राजा चंद्रप्रभने उनको छुड़ाने के लिए मंत्रियों को भेजा । अचलने मंत्रियोंके सामने सारा वृत्तान्त कह सुनाया। मंत्रियों ने वापिस जाकर, राजाको कहा।