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जैन रामायण आठवाँ सर्ग।
हुआ था। वह रूपवान और साधुओंका सेवक था। एक समय वह मार्गमें चला जा रहा था। उस समय राजाकी मुख्य रानी ललिताने उसको देखा । उसके हृदयमें विकार उत्पन्न होगया । इसलिए उसने उसको कामकेलिके लिए बुलाया । उसी समय अचानक राजा वहाँ आगया । उसको देखकर, ललिता क्षणवार क्षुब्ध होगई । फिर 'चोर-चोर, ' करके पुकार उठी । राजाने श्रीधरको पकड़कर, सेवकों द्वारा वध स्थानपर भेज दिया। उस समय उसने व्रत लेनेकी प्रतिज्ञा की, इसलिए कल्याण नामा मुनिने उसको छुड़ा दिया। मुक्त होकर उसने दीक्षा ली, और तपकरके वह देवलोकमें गया । वहाँसे चवकर, मथुरामें वह चंद्रप्रभ राजाकी रानी कांचनप्रभाकी कुक्षीसे अचल नामा पुत्र हुआ । राजा चंद्रप्रभ उससे बहुत प्यार करने लगा। उसके भानुपम आदि सपत्न आठ ज्येष्ठ. बन्धु थे। उन्होंने यह सोचकर, उसको मार देनेका यत्न करना प्रारंभ किया कि-पिताको यही सबसे ज्यादा प्यारा है, इसलिए राज्य इसीको मिलेगा । मंत्रियोंको उनके. 'प्रयत्नका हाल ज्ञात होगया । उन्होंने अंचलको खबर दी। अचल वहाँसे भाग गया । वनमें भटकते हुए एक बहुत बड़ा काँटा उसके पैरमें चुभ गया। उसकी पीड़ासे अचल. सेने चिल्लाने लगा।