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जैन रामायण आठवाँ सर्ग।
रहित-शान्त हो गया और भरत भी उसको देख कर, बहुत संतुष्ट हुए। — उपद्रवकारी हाथीका छूटना सुनकर, राम, लक्ष्मण भी अपने सामन्तों सहित उसको पकड़ने के लिए तत्काल ही वहाँ गये । हाथी पकड़ा गया । रामकी आज्ञासे महावत लोग उसको वापिस अपने ठिकाने पर बाँधनेके लिए ले गये । उसी समय देशभूषण, और कुलभूषण नामके दो केवली मुनियोंके आकर उद्यान में समोसरनेके समाचार उनको मिले । राम, लक्ष्मण और भरत सपरिवार उनको वंदना करनेके लिए गये।
वंदना करके बैठने बाद रामने पूछा:-" हे महात्मा ! मेरा भुवनालंकार नामा हाथी भरतको देखते ही मद रहित कैसे हो गया ?"
देशभूषण केवली बोले:-" पहिले ऋषभदेव भगवानके साथ चार हजार राजाओंने दीक्षा ली थी । पीछे प्रभु जब मौनपूर्वक निराहार ही ( शुद्ध आहार पानी न मिलनेसे) रहने लगे और विहार करने लगे, तब वे सब ही खेदित होकर, वनवासी तापस होगये । उनमें प्रहला-- दन और सुप्रभ राजाके चन्द्रोदय और सुरोदय नामा दो पुत्र भी थे। उन्होंने चिरकाल तक भवभ्रमण किया । अनुक्रमसे चन्द्रोदय गजपुरमें हरिमती राजाकी रानी चंद्र