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________________ आप आ ही गये हैं, इस लिए इस राज्यको ग्रहण कीजिए । मेरा मन अब इस राज्यको नहीं चाहता है।" रामने साश्रुनयन उत्तर दियाः-“हे वत्स ! तुम यह क्या कह रहे हो ? हम यहाँ तुम्हारे बुलानेसे आये हैं। तुम जैसे अब तक राज्य करते आये हो, उसी तरह राज्य करो। राज्य सहित हमें छोड़कर विना कारण विरहव्यथा क्यों पहुँचाते हो ? प्रथमकी भाँति ही मेरी आज्ञाका पालन करो और राज्य चलाओ।" रामको इस भाँति आग्रह करते हुए देख, भरत वहाँसे उठकर जाने लगे। लक्ष्मणने उनको फिरसे, हाथ पकड़कर, लिठा लिया। भरतको व्रतका निश्चय करके आया हुआ जान, सीता 'विशल्या आदि ससंभ्रम हो वहाँ आई और उन्होंने भरतसे व्रतका आग्रह भुलानेके हेतु-जलक्रीडा करने के लिए चलनेका अनुरोध किया। भरतको, उनका अत्यंत आग्रह देखकर, अनुरोध स्वीकार करना पड़ा। रामके हाथी भुवनालंकार और भरतका पूर्वभव । इच्छा न रहने पर भी भरत, अपने अन्तःपुर सहित जलक्रीडा करनेको गये । विरक्त हृदयके साथ उन्होंने एक मुहूर्त पर्यन्त क्रीडा की। फिर राजहंसकी भाँति निकल कर, भरत सरोवरके तीरपर आये । उसी समय, स्तंभको उखाड़कर, भुवनालंकार नामा हाथी भी वहाँ आया । मदांध होने पर भी वह भरतको देखते ही मद
SR No.010289
Book TitleJain Ramayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGranthbhandar Mumbai
Publication Year
Total Pages504
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size31 MB
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