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सीताको रामचन्द्रका त्यागना।
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लेखाकी कूखसे कुलंकर नामका पुत्र हुआ । सुरोदय भी उसी नगरमें विश्वभूति ब्राह्मणकी स्त्री अग्निकुंडाके गर्भसे जन्मा और श्रुतिरति नामसे प्रसिद्ध हुआ।
कुलंकर राजा हुआ। एक दिन वह तापसके आश्रममें जा रहा था; उसको अभिनंदन नामके अवधिज्ञानी मुनिने कहाः-" हे राजा ! तू जिसके पास जा रहा है, वह तापस पंचाग्नि तप करता है । तप करनेके लिये लाये हुए लकड़ोंमें एक सर्प है। वह सर्प पूर्वभवमें क्षेमकर नामा तेरा पितामह था; इस लिए काष्टको बड़ी सावधानीसे फड़वाकर, उस सर्पकी रक्षा कर ।"
मुनिके वचन सुनकर, राजा व्याकुल हो गया। तत्काल उसने वहाँ जाकर लक्कड़ फड़वाया। मुनिके कथनानुसार उसमें सर्पको देखकर, उसे बहुत विस्मय हुआ। कुलंकर राजाको दीक्षा लेनेकी इच्छा हो आई। उसी समय श्रुतिरति ब्राह्मण वहाँ आया और कहने लगा:-" यह तुम्हारा धर्म आम्नाय रहित नहीं है, तो भी यदि तुम्हारी दीक्षा लेने ही की इच्छा हो, तो अपनी अन्तिम आयुमें लेना । इस समय किस लिए दुखी होते हो ? "
श्रुतिरतिकी बात सुनकर, राजाका, दीक्षा लेनेका, उत्साह भग्न हो गया। वह किंकर्तव्य विमूढकी भाँति विचार करता हुआ संसारहीमें रहा । उसके श्रीदामा नामकी एक