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सीताको रामचन्द्रका त्यागना ।
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"हे वीरो ! पूर्वकी भाँति ही तुम अपना राज्य करो। तुम्हारी लक्ष्मीकी हमें इच्छा नहीं है । हम तुम्हारा कल्याण चाहते हैं।"
राम, लक्ष्मणके वचन सुन, शोक और विस्मयसे गद्गद कंठ हो कुंभकर्णादिने कहा:-" हे महा भुज ! हे वीर! हमें इस विशाल पार्थिव राज्यकी कुछ जरूरत नहीं है। हम तो अब मोक्षका साम्राज्य दिलानेवाली दीक्षाको ग्रहण करेंगे।" - इन्द्रजीत और मेघवाहनका पूर्व भव।
उन दिनों कुसुमायुध उद्यानमें चार ज्ञानके धारी अप्रमेयबल नामा मुनि आये हुए थे । उनको उसी जगह रावणकी मृत्युवाली रात्रिको केवलज्ञान हुआ था । देवता ओंने आकर उनका केवलज्ञान महोत्सव किया । सवेरे ही राम, लक्ष्मण, कुंभकर्ण, इन्द्रजीत आदि मुनिको वंदना करने गये। वंदना करके उन्होंने धर्मोपदेश सुना। देशनाव्याख्यान-सुनकर, इन्द्रजीत और मेघवाहनको परम वैराग्य उत्पन्न हो गया । उन्होंने अन्तमें विनंय पूर्वक मुनिसे अपने पूर्व भव पूछे ।
मुनिने कहा:-" इसी भरत क्षेत्रमें कोशांबी नामा नगर है । उसमें तुम एक गरीबके घर, बन्धुरूपसे जन्मे थे । तुम्हारा नाम, प्रथम और पश्चिम था । एकवार तुमने भवदत्त मुनिके पाससे धर्मसुनकर, व्रत ग्रहण किया।