________________
आठवाँ सर्ग।
सीताको रामचन्द्रका त्यागना। कुंभकर्ण और इन्द्रजीतका बंधनमुक्त होना। रावण मारागया। सारे राक्षस घबरा गये और विचा‘रने लगे कि-" अब भागकर कहाँ जायँ " विभीषण
अपने ज्ञाति भाइयोंके स्नेहसे उनके पास गया और उनके भयभीत हृदयोंको उसने इस प्रकारसे आश्वासन दियाः"हे राक्षस वीरो ! ये राम और लक्ष्मण ( पद्म और नारायण ) आठवें बलदेव और वासुदेव हैं । ये शरण्य हैं-शरण दाता हैं। इस लिए निःशंक होकर इनकी शरणमें आओ।"
विभीषणके वचन सुनकर, सारे राक्षसवीर रामके -शरणमें आये । राम और लक्ष्मणने उनको उदार आश्रय दिया।
'........ वीरा हि, प्रजासु समदृष्टयः ।' ( वीर पुरुष प्रजाके ऊपर समान दृष्टि रखनेवाले होते हैं। ) विभीषणको अपने भ्राता रावणकी मृत्युसे अत्यंत शोक हुआ। " हा भ्रात ! हा बन्धु !" ऐसे कहता हुआ चह उच्च और करुण स्वरमें रुदन करने लगा । मंदोदरी आदि भी वहीं बैठी रुदनकर रही थीं । बन्धु वियोगके