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जैन रामायण सातवाँ सर्ग।
अब भी सीताको छोड़ दो।" रावणने क्रोधसे कहा:"मुझे उस चक्रकी ज्या आवश्यकता है ? मैं सिर्फ एक मुक्के से शत्रुओंको और कोको चूर चूर कर दूंगा।"
इस भाँति गर्व युक्त बोलते हुए रावणकी छातीमें लक्ष्मणने चक्रका प्रहार किया । चक्रने कूष्माण्ड-पेठेकी भाँति रावणके हृदयको चीर दिया । उस दिन ज्येष्ठ कृष्ण एकादशीका दिन था । रावण हृदय फट जानेसे मरकर, चौथे नरकमें गया। देवताओंने आकाशसे, जय जयकार करते हुए, लक्ष्मणपर फूलोंकी वर्षा की । वानरसेना हर्षोन्मत्त होकर नृत्य करने लगी। उनकी किलकारियोंके शब्दसे पृथ्वी और आकाश भर गये ।