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रूईको जिस तरह वायु उड़ा देता है, उसी तरह राक्षस वीरोंको मार्ग से हटाकर लक्ष्मण रखापर बाणवर्षा करने लगे । लक्ष्मणका पराक्रम देखकर, शवणको अपनी विजयमें शंका होने लगी। इससे उसने, जगतके लिए भयंकर बहुरूपिणी विद्याको स्मरण किया। स्मरण करते ही विद्या आ उपस्थित हुई। उसके द्वारा रावणने अनेक भयंकर रूप बनाये । लक्ष्मणने, भूमिपर, आकाशमें, बगलोंमें
और आगे पीछे शस्त्र वर्षा करते हुए अनेक रावण देखे। लक्ष्मण एक ही थे तो भी गरुडयर बैठकर शीघ्रता पूर्वक बाण चलाते हुए, वे ऐसे जान पड़ते थे कि-रावणके जितने ही लक्ष्मण भी हैं। वे अनेक रावणोंका संहार करने लगे । वासुदेव लक्ष्मणके बाणोंसे रावण घवरा गया। उसने अर्द्धचक्रीके चिन्ह स्वरूप जाज्वल्यमान चक्रका स्मरण किया। चक्रके प्रकट होते ही । क्रोधारक्त नेत्री रावणने अपने चक्ररूपी अन्तिम शस्त्रको आकाशमें घुमाकर लक्ष्मणके ऊपर छोड़ा । वह चक्र लक्ष्मणके प्रदक्षिणा देकर उनके दाहिने हाथमें आगया; जैसे कि उदयगिरिके शिखरपर सूर्य आ जाता है।
इस दशाको देखकर रावण दुःखी हो, विचार करने लगा, मुनिका वचन सत्य हुआ। विभीषण आदिका निर्णय भी ठीक निकला । रावणको दुखी देखकर, विभीषणनें कहा:-" हे भ्राता ! यदि जीवनकी इच्छा हो तो