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आठ सिद्धियाँ मिलती हैं। उन नेत्रांको धन्य है, कि जो प्रतिदिन आपके दर्शन करते हैं । नेत्रोंसे भी उन हृदयोंको धन्य है, जो आपको हृदयमें धारण करके रखते हैं । हे देव! आपके चरण-स्पर्श मात्रहीसे प्राणी निर्मळ होजाते हैं। क्या स्पर्शवेधि रससे लोहा भी स्वर्ण नहीं हो जाता है ? हे प्रभो ! तुम्हारे चरणकमलमें नमस्कार करनेसे और तुम्हारे सामने नित्य प्रति भूमिपर लोटनेसे मेरे लिलाटपर आपकी किरण-पंक्ति शृंगारतिलक रूप होओ। हे प्रभो ! आपको भेट किये हुए पुष्पगंधादिक पदार्थोंसे मेरी राज्यसंपत्तिरूप बेलका फल मुझको प्राप्त होओ। हे जगत्पति ! आपको मेरी बारबार यही प्रार्थना है कि-भवभवमें मुझको आपकी अत्यंत भक्ति-परा भक्ति-प्राप्त होवे ।
रावणका बहुरूपिणी विद्या साधना । भगवानकी स्तुति करनेके बाद, हाथमें अक्षमाला ले, रत्नशिलापर बैठ, रावणने विद्या साधना प्रारंभ किया। मंदोदरीने यमदंड नामा द्वारपालको बुलाकर कहाः"लंकापुरीमें ढिंढोरा पिटवादे कि-आठ दिनतक सब नर नारी जैन धर्मका पालन करें, जो नहीं करेगा उसको 'प्राण दंड दिया जायगा।" __ आदेशानुसार द्वारपालने ढिंढोरा पिटवा दिया। जासू सोंने सुग्रीवको जाकर यह खबर दी । सुग्रीवने रामसे