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मंत्रियोंने पूर्ववत ही सलाह दी कि-" अब सीताको रामके सिपुर्द कर देना ही उचित है । आपने रामसे प्रतिकूल चलनेका फल तो देख ही लिया है, अब अनुकूल चलकर उसका भी परिणाम देखिए । व्यतिरेक-प्रतिकूल और अन्वय-अनुकूलसे सब कार्योंकी परीक्षा होती है, इस लिए हे राजन् ! आप केवल व्यतिरेकके पीछ ही क्यों लगे हुए हैं ? अब भी आपके बहुतसे बन्धु, बांधव और पुत्र जीवित हैं इस लिए, सीता रामको सौंपकर, उनकी रक्षा करिए और उन सहित राज्यसंपदा भोगिए ।
सीताको अर्पण करदेनेकी, मंत्रियोंकी, बातने रावणके मर्मपर आघात किया। वह बहुत देरतक चुपचाप बैठा हुआ विचार करता रहा । पश्चात उसने बहुरूपिणी विद्याको साधनेका निश्चयकर, मंत्रियोंको रवाना करदिया। रावण भी वहाँसे उठकर शान्तिनाथ भगवानके चैत्यमें गया । भक्ति-भावसे रावणका मुख खिल गया । उसने इन्द्रकी भाँति जल कलशोसे शांतिनाथकी मूर्तिको स्नान कराया । गोशीर्ष चंदनका उसपर लेप किया और दिव्य पुष्पोंसे उनकी पूजा की फिर उसने शांतिनाथ प्रभुसे स्तुति करना प्रारंभ किया।
शान्तिनाथ प्रभुकी स्तुति। 'देवाधिदेवाय जगत्-तायिने परमात्मने । श्रीमते शांतिनाथाय, षोडशायाहते नमः ।। २३