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जैन रामायण सातवाँ सर्ग ।
सामंत बोला:-" हे राम ! ऐसा करना तुम्हारे लिए योग्य नहीं है । मात्र एक स्त्रीके लिए तुम अपने प्राणोंको क्यों संशयमें डालते हो ? रावणके प्रहारसे लक्ष्मण एकवार जी गये हैं; परन्तु अबकी बार यह आशा न रखना। अकेला रावण सारे विश्वको जीतनेमें समर्थ है । अतः उसकी बातको मान लो । अन्यथा उसका परिणाम, तुम्हारे, लक्ष्मणके और इस वानर सेनाके जीवनका अन्त होगा।" ___ इन बातोंसे लक्ष्मणको क्रोध हो आया । वे बोले:" रे अधम दूत ! क्या अबतक रावण अपनी और दूसरेकी शक्तिको नहीं समझा है ? उसका सारा परिवार मारा गया और कैद हो गया है । स्त्रियाँ ही अवशेष रहः गई हैं, तो भी अबतक वह अपने ही मुँहसे अपनी बड़ाई करता है । यह उसकी कैसी धृष्टता है ? जैसे वटवृक्षका, सारी.शाखाओं और डालियोंके कट जानेपर, केवल हँठ मात्र रह जाता है, वैसे ही रावण भी परिवार रूपी शाखा विहीन अकेला रह गया है । वह अब कब तक जी सकेगा?
सामंत उसका कुछ उत्तर देना चाहता था; परन्तु वानरवीरोंने गर्दनिया देकर उसको वहाँसे निकाल दिया। सामंतने राम लक्ष्मणने जो बातें कहीं थी वे रावणको सुना दी। सुनकर, रावणने मंत्रियोंसे पूछा किक्या करना चाहिए?